जगजीत सिंह को सर्वदा सबसे सफल गज़ल गायक के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने समालोचक प्रशंसा और व्यावसायिक सफलता दोनों हासिल किये और जिनकी आत्मापूर्ण आवाज ने लाखों लोगों के दिलो को छुआ है।
गायक जगजीत सिंह की आवाज़ ने दुनिया भर में लाखों लोगों को सम्मोहित किया है। उनके प्रशंसक उनके मज़ेदार गज़लों के दीवाने हैं – सबसे व्यापक और लोकप्रिय काव्य रूपों में से एक, खासकर मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में। जगजीत सिंह ने सुन्दरतापूर्वक खूबसूरती से लिखित गीतों के माध्यम से दर्द और उदासी व्यक्त करने की कला में महारत हासिल की थी ।
जगमोहन से जगजीत तक का सफर आसान नहीं था। जगमोहन के पिता अमीर चंद का जन्म हिंदू परिवार में हुआ था लेकिन उन्होंने सिख धर्म को अपनाया और तब से उन्हें सरदार अमर सिंह कहा जाने लगा। उनकी स्थिति बहुत दयनीय थी क्योंकि वह गरीब थे और उन्हें पूरे दिन काम करना पड़ता था। हालांकि, वह रात में अध्ययन करने के लिए समर्पित थे और अत्यधिक परिश्रम के पश्चात उन्हें सरकारी नौकरी मिल गई जहां उनकी पहली पोस्टिंग राजस्थान के बीकानेर में हुई । एक दिन जब वह बीकानेर से अपने गृहनगर श्री गंगानगर में यात्रा कर रहे थे, तो उनकी मुलाकात ट्रेन में बच्चन कौर नाम की एक खूबसूरत सिख लड़की से हुई और एक बार उनकी वार्तालाप शुरू हो जाने के बाद यह कभी समाप्त नहीं हुई क्योंकि तत्पश्चात वे दोनों शादी के बंधन मे बंध गए। उनके ११ बच्चे थे, जिनमें से केवल चार ही बचे उनमें एक जगमोहन १९४१ में श्री गंगानगर में पैदा हुए थे।
१९४७ में भारत को आजादी मिलने के बाद, देश के लिए यह एक कठिन समय था क्योंकि देश अपने पैरों पर खड़ा होना शुरू कर रहा था और हर व्यक्ति भोजन और काम के साधनों के लिए संघर्ष कर रहा था। ऐसे संघर्ष समय में कला रूपों जैसे संगीत के लिए शायद ही कोई जगह थी। लेकिन जैसा कि कहा जाता है, कि इन सब के बीच में ही आशाजनक युवा व्यक्ति जगमोहन उत्तर भारत के राजस्थान में श्री गंगानगर की सड़कों से बाहर निकल गये।
एक विशेष दिन, जगमोहन के पिता ने उन्हें अपने धार्मिक गुरु के पास ले गये, तब उन्होंने भविष्यवाणी की और सलाह दी कि अगर जगमोहन अपना नाम बदल ले तो एक दिन वह इस पूरी दुनिया को कुछ विशेष कौशल से जीत लेंगे। उस दिन से जगमोहन जगजीत बन गए। उस समय बिजली नहीं थी और जगजीत संध्या के बाद केरोसिन दीपक के नीचे अध्ययन करते थे, हालांकि वह अध्ययन को लेके ज्यादा उत्सुक नहीं थे। जगजीत को बहुत ही कम उम्र से ही गायन के लिए बेहद प्यार और जुनून था और उन्होंने पहला गाना जब वो खालसा स्कूल में पढ़ रहे थे तब गाया था, और बाद में १९५५ में उन्होंने बड़े संगीतकारों के लिए गाया। वह गुरुद्वारों में गुरबानी (धार्मिक भजन ) भी छोटी उम्र से ही गाते थे ।
बाद में जगजीत उत्तरी भारत के पंजाब में उच्च शिक्षा के लिए जालंधर चले गए जहां उन्होंने डीएवी कॉलेज में अपना बैचलर ऑफ साइंस पूरा किया। अपने कॉलेज के दिनों में उन्होंने कई गाने गाए और १९६२ में उन्होंने कॉलेज के वार्षिक दिवस समारोह के दौरान भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के सामने एक गीत गाया। उनके पिता हमेशा कामना करते थे कि जगजीत कड़ी मेहनत करेंगे और एक इंजीनियर बन जाएंगे या फिर सरकार में एक नौकरशाही अधिकारी जो की बहुत ही सम्मानजनक नौकरी मानी जाती है। तो अपने पिता की इच्छाओं को पूरा करने के लिए जगजीत हरियाणा के कुरुक्षेत्र में इतिहास में मास्टर ऑफ आर्ट्स करने के लिए चले गए।
स्नातकोत्तर के दौरान जगजीत एक विशेष अवसर पर गाने के लिए हिमाचल प्रदेश में शिमला गए और संयोगवश उनकी मुलाकात ओम प्रकाश से हुई जो भारतीय फिल्म उद्योग में एक प्रसिद्ध अभिनेता थे। ओम प्रकाश जगजीत के गायन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत जगजीत से मुंबई आने के लिए कहा जो शहर भारतीय फिल्म और संगीत उद्योग का घर है। जगजीत तुरंत सहमत हो गए और मुंबई चले गए जहां उन्होंने शुरुआत में कई छोटी नौकरियां करके गुज़ारा किया फिर विज्ञापन-गीत लिखकर और शादियों में लाइव प्रदर्शन करके कुछ पैसे कमाने लगे।
दुर्भाग्यवश, यह जगजीत के लिए एक बहुत ही सुखद यात्रा नहीं थी क्योंकि वह कुछ हासिल नहीं कर सके और मुंबई में गुजारा करने के लिए एक-एक पैसे के मोहताज हो गए. तब उन्होंने बिना टिकट की ट्रेन के शौचालय में छूप कर यात्रा की और घर वापस लौट आए। हालांकि इस अनुभव ने जगजीत की उत्साह को कम नहीं होने दिया और १९६५ में उन्होंने निश्चय किया कि वह अपने जीवन को संगीत के साथ बिताएंगे और इसलिए वह एक बार फिर मुंबई चले गए। जगजीत के सबसे करीबी दोस्तों में से एक हरिदामन सिंह भोगल ने जगजीत के मुंबई जाने के लिए पैसो की व्यवस्था की और बड़े शहर में गुजारा करने के लिये उनको पैसा भेजते रहे। जगजीत को अपने उदार दोस्त से आर्थिक मदद मिली लेकिन उनके संघर्ष के दिनों में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
जगजीत ने अंततः उस समय के प्रसिद्ध गायकों मोहम्मद रफी, केएल सहगल और लता मंगेशकर से शास्त्रीय संगीत सीखा। बाद में संगीत के पेशेवर करियर में उनकी दिलचस्पी बढ़ी और उन्होंने कुशल उस्ताद जमाल खान और पंडित चगन लाल शर्मा जी से शास्त्रीय संगीत में प्रारूप प्रशिक्षण प्राप्त करने का निर्णय लिया। दिलचस्प बात यह है कि मुंबई में अपने संघर्ष के दिनों में, उन्होंने फिल्म निर्देशक सुभाष घई की फिल्म ‘अमर’ में मुख्य नायक के मित्र के रूप में एक छोटा सा अभिनय भी किया।
जगजीत का परिवार पूरी तरह से अनजान था कि वह मुंबई में थे क्योंकि वह अपनी कॉलेज के छुट्टी के दौरान घर जाते थे। जब वह लंबी अवधि के लिए घर नहीं गए, तो उनके पिता ने जगजीत के भाई से पूछा कि वो जगजीत के दोस्तों से उनके ठिकानो के बारे में पता करें। हालांकि उनके एक मित्र ने जगजीत के भाई को सूचित किया कि जगजीत ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और मुंबई चले गए लेकिन उनके भाई ने इस बारे में चुप रहने का फैसला किया। लगभग एक महीने बाद, जगजीत ने खुद अपने परिवार को एक पत्र लिखा और उन्हें पूरी सच्चाई बताई और उन्होंने अपनी पगड़ी पहनना बंद कर दिया क्योंकि उन्हें लगता था कि संगीत उद्योग सिख गायक को स्वीकार नहीं कर सकता है। उनके पिता इस बारे में जानकर क्रोधित थे और उस दिन से जगजीत से बात करना बंद कर दिया था।
मुंबई में अपने प्रवास के दौरान, जगजीत को एचएमवी कंपनी के साथ काम करने का मौका मिला, जो उस युग की एक बड़ी संगीत कंपनी थी और उनका पहला ईपी (extended play) बहुत लोकप्रिय हुआ। बाद में जब एक युगल विज्ञापन गीत गा रहे थे तब वह चित्रा दत्ता, (एक बंगाली लड़की) से मिले और आश्चर्यजनक रूप से चित्रा को पहले जगजीत की आवाज़ पसंद नहीं आयी। उस समय चित्रा विवाहित थी और उनकी एक बेटी भी थी, हालांकि चित्रा का १९६८ में तलाक हो गया एवम जगजीत और चित्रा ने १९७१ में विवाह कर लिया। यह जगजीत सिंह के लिए शानदार वर्ष था उन्हें और चित्रा को ‘गजल जोड़ी’ कहा जाता था। उन्हें जल्द ही एक बेटे का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसका नाम उन्होंने विवेक रखा।
इस साल में जगजीत का ‘सुपर ७ ‘ नामक एक सुपर हिट संगीत एल्बम प्रसारित हुआ। उनका सबसे महत्वपूर्ण और पौराणिक एल्बम ‘द अनफॉर्गेटबलस’ था कोरस और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग कर एचएमवी कंपनी द्वारा उन्हें एक अवसर दिया गया जिसके बाद वह रातोंरात एक सितारा बन गए और यह वास्तव में उनकी पहली बड़ी उपलब्धि थी। ‘द अनफॉर्गेटबलस’ उस समय में सबसे ज्यादा बिकने वाली एल्बम थी जब फिल्मों के अलावा एल्बमों के लिए कोई मार्केटप्लेस नहीं था। उन्हें १९७७ में ८०,००० रुपये का चेक मिला, जो उस समय बहुत बड़ी राशि थी। जगजीत की सफलता देखने के बाद उनके पिता ने एक बार फिर से उनसे बात करना शुरू कर दिया।
जगजीत का दूसरा एल्बम ‘बिरहा का सुल्तान’ १९७८ में आया और उनके अधिकांश गाने सफल रहे। इसके बाद, जगजीत और चित्रा ने कुल सोलह एल्बम जारी किए। वह १९८७ में पूरी तरह से डिजिटल सीडी एल्बम ‘समय से परे’ रिकॉर्ड करने वाले पहले भारतीय संगीतकार बने जो भारत के बाहर विदेश तटों पर रिकॉर्ड किया गया था। इस सफलता की चमक के बीच में ही जगजीत और चित्रा को एक विनाशकारी व्यक्तिगत त्रासदी का सामना करना पड़ा। उनके बेटे विवेक की १८ साल की उम्र में सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। १९९० में इस दर्दनाक दुःखद घटना के बाद, चित्रा और जगजीत दोनों ने गायन छोड़ दिया।
जगजीत १९९२ में गायन में लौट आए और कई कवियों को अपनी आवाज दी। उन्होंने लेखक गुलजार के साथ कई एल्बमों का निर्माण किया और गुलजार द्वारा लिखे गए एक टेलीविजन नाटक ‘मिर्जा गालिब’ के लिए धुनों की रचना की। जगजीत ने अपनी आवाज ‘गीता श्लोको’ और ‘श्री राम चरित मानस’ को भी दी और जब ऐसे भजन जगजीत सिंह द्वारा सुनाई गयी तो श्रोताओं को स्वर्गीय भावना का एहसास दिया। जगजीत के कुछ और बेहतरीन काम अपने बेटे को खोने के बाद नज़र आए उस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे उनके दिल पर एक समृद्ध प्रभाव पड़ा है। भारत में लोग शास्त्रीय संगीत से अवगत थे, लेकिन जिस तरीके से जगजीत की आवाज़ आम आदमी से जुड़ती है वह आश्चर्यजनक है। हालांकि उन्होंने इस तरह की आत्मापूर्ण आवाज में गाया, वह एक बहुत ही दोस्ताना और आकर्षक व्यक्ति थे। वह साइकिल चलाना पसंद करते थे क्योंकि यह उन्हे युवा अवस्था की याद दिलाता था।
हर आयु वर्ग के लोग न सिर्फ जगजीत सिंह के गायन की बल्कि आत्मात्मक गीत और गज़ल रचनाओं की भी प्रशंसा करते हैं। जगजीत ने सुंदर कविता/ गायकी की और हर गीतकार को अपनी विशिष्ट शैली में श्रद्धांजलि अर्पित की। वह हमेशा अपने सहयोगियों के लिए बहुत मददगार थे जिनके साथ हमेशा उनका स्नेहशील संबंध था। १९९८ में, उन्हें एक बड़ा दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद डॉक्टर ने उन्हें बाईपास सर्जरी से गुजरने का सुझाव दिया जिसके लिए वह सहमत नहीं हुये। बल्कि इसके बदले उन्होंने देहरादून (उत्तराखंड) में अपने दोस्त के यहाँ जाने का फैसला किया, जो एक आयुर्वेदिक विशेषज्ञ थे और जगजीत ने उनके इलाज में पूर्ण विश्वास जताया। एक महीने बाद उन्होंने अपना काम फिर से शुरू कर दिया।
जगजीत सिंह एकमात्र भारतीय गायक-संगीतकार हैं जिन्होंने भारत के पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जो खुद एक कवि थे के लिए दो एल्बम तैयार किए – नयी दीशा और संवेदना । २००३ में, उन्हें गायन में उनके योगदान के लिए देश में तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। २००६ में, उन्हें शिक्षक लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला। दुर्भाग्यवश, २००९ में एक और त्रासदी हुई जब जगजीत और चित्रा की बेटी का निधन हो गया एक बार फिर समय ने उन्हें उदासी में डूबने का कारण दे दिया।
२०११ में, ७० वर्ष के पूरे होते ही जगजीत ने इस साल ‘ ७० संगीत कार्यक्रम’ करने का फैसला किया जिसमें उन्होंने अपने बेटे की याद में एक गीत प्रस्तुत किया ‘ चिट्ठी ना कोई सन्देश, जाने वो कौन सा देश, जहां तुम चले गए ‘। सितंबर २०११ में जगजीत सिंह को मस्तिष्क के रक्तचाप का सामना करना पड़ा और १८ दिनों के लिए कोमा में रहने के बाद, उनका १० अक्टूबर, २०११ को निधन हो गया। जगजीत ज़ी के संगीत को उत्कृष्ट मना जाता था और उन्हें अपने कई गीतो से बड़ी सफलता मिली और एक आम आदमी को गजल समझाने की कला उनमें ही थी. वह निश्चित रूप से सर्वदा सबसे लोकप्रिय गज़ल गायक रहे। हिंदी फिल्म अर्थ से उनके गीत ‘झुकी झुकी सी नज़र‘ और ‘तुम जो इतना मुस्करा रहे हो‘ ‘ प्यार, जुनून और अनुच्चरित आभार की भावनाओं के लिए अनंत कसीदा व्यक्त किया है. उनके गीत ‘ होश वालो को खबर क्या ‘ और ‘ होठों से छु लो तुम ‘ जैसे गीतों ने उदासी, लालसा, अलगाव का दर्द और एक तरफा प्यार व्यक्त किया। जगजीत सिंह ने मंत्रमुग्ध गीतों की एक सुंदर विरासत छोड़ दी है, जो लाखों श्रोताओं द्वारा आने वाले लंबे समय तक सराहना की जाएगी।