कुछ हफ्ते पहले, रविवार की सुबह मैं मेहमूद के साथ एक मित्र के पिता की शवाधान में सरीक होने के लिए जा रहा था. रास्ते को देखकर मुझे लगा की मैं लुटियन्स दिल्ली में औरंगजेब रोड पार कर रहा हूँ. मैंने सड़क को पहचाना लेकिन नाम अलग दिखा तब मेरे मित्र ने मुझे बताया कि औरंगजेब रोड का नाम बदल दिया गया है। गंभीर वक्त और उदास मनोदशा का माहौल होने की वजह से मैं सड़कों और भारतीय शहरों का नाम बदलने की वर्तमान राजनीति के संदर्भ में इससे अधिक नहीं सोच सका।

कुछ समय बाद एक शाम को संयोग से मैंने यूट्यूब पर किसी को सत्रहवीं शताब्दी के मुगल युवराज दारा शिकोह के मुकदमे के बारे में बात करते हुये सुना।

Mughal Crown
By UnknownUnknown author (1) [Public domain], via Wikimedia Commons

अपने भाई औरंगजेब के न्यायालय में, युवराज दारा ने कहा…… “ सृष्टिकर्ता कई नामों से जाना जाता है। उन्हें भगवान, अल्लाह, प्रभु, यहोवा, अहुरा माज़दा और कई अलग-अलग देशों में भक्त लोग कई और नाम से पुकारते है। आगे कहा “हाँ, मेरा मानना ​​है कि अल्लाह दुनिया के सभी लोगों के भगवान हैं जो उन्हें अलग-अलग नामों से बुलाते हैं. मेरा मानना ​​है कि केवल एक महान ब्रह्मांड सृष्टिकर्ता है भले ही लोगों के पास पूजा के विभिन्न स्थान हों और भगवान को कई अलग-अलग तरीकों से पूजते हो.”

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युवराज दारा जिन्होंने अपने मन में सामाजिक सद्भाव और सहिष्णुता को अत्यंत महत्व दिया था, शायद सत्रहवीं शताब्दी के लिए उनका यह एक बहुत ही आधुनिक राजनीतिक तत्वविचार था।

दुर्भाग्यवश, औरंगजेब ने अपने भाई दारा को क्रूरता से मार डाला. और उसके कटे सिर को अपने अस्वस्थ बुजुर्ग पिता को रात के खाने की मेज पर रखकर उन्हें ‘भेंट’ कि जो कि बहुत ही जघन्य और बर्बर कृत्य था.

एक आदमी अपने बुजुर्ग अशक्त पिता के लिए इतनी क्रूर दर्दनाक चीजें कैसे कर सकता है !

अभी के लिए, मुझे अब औरंगजेब रोड दिल्ली में नहीं दिखता है

लेकिन मुझे दारा शिको की सामाजिक सद्भाव और सहिष्णुता की दृष्टि का जश्न मनाने के लिए उनके नाम की कोई सड़क भी नहीं दिखती है. दिल्ली में हुमायूं मकबरे में उनका अवशेष एक अज्ञात कब्र में दफन है.

कश्मीरी गेट के पास ‘दारा शिको लाइब्रेरी’, वर्तमान में एक निर्विवाद संग्रहालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का त्याग किया गया कार्यालय है और यह ही बस उनके विचारों और ज्ञान कि याद दिलाता है.

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