“बिहार की जरूरत क्या है” श्रृंखला में यह दूसरा लेख है इस लेख में लेखक ने बिहार के आर्थिक विकास समृद्धि एवं उन्नति के लिए उद्यमिता के अनिवार्यता पर प्रकाश डाला है
जीन पिएगेट एक स्विस मनोवैज्ञानिक जो संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत के लिए जाने जाते हैं उन्होंने कहा की, “शिक्षा का सैद्धांतिक लक्ष्य उन पुरुषों एवं महिलाएं को बनाना चाहिए जो नई चीजें करने में सक्षम हैं, बजाय इसके जो अन्य पीढ़ियों ने किया उसी को दोहराना”
पटना और दिल्ली के कोचिंग बाजारों में सरकारी विभागों में ‘नौकरी’ के लिए प्रयास करने के अपने उप-राष्ट्रीय जीवन वृत्ति को बिहार के छात्रों के लिए अलविदा कहने का यह महत्वपूर्ण समय है. और इसके बजाय वे अपने उत्कृष्ट प्रतिभा को दिशा दे, बुद्धि और बल का उपयोग करें. दीनहीन के मुद्दे को हल करने के लिए नई खोज करने की प्रवृत्ति के साथ आगे आएँ और बिहार राज्य के आर्थिक पिछड़ेपन और प्रति व्यक्ति आय ३,००० रुपये प्रति माह है जो राष्ट्रीय औसत १३,००० रुपये प्रति माह और गोवा के ३२,००० रुपये प्रति माह के मुकाबले बहुत कम है एवं इसका समाधान निकालें। बिहार की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) भारत के ३३ राज्यों में सबसे नीचे है और यह तुलना माली जैसे देश के साथ की जाती है।
प्राचीन काल के सभी गौरवशाली अतीत, समृद्ध संस्कृति और विरासत ,सामाजिक-राजनीतिक विकास,मेहनती बिहारी छात्र जो कठिन सरकारी सेवाओं की परीक्षाओं को तोड़ने में उत्कृष्टता रखते हैं ऐसा होते हुये भी नितांत विडंबना यह है कि प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में बिहारी प्रति माह ३,००० रुपये कमाते हैं। अतीत के निराधार गौरव और केंद्र सरकार सेवाओं में प्रतिनिधित्व ने बिहारियों को बदल दिया है उनकी आंखें पिछड़ेपन से दूर हैं और खुद को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं इस वजह से ये सब राज्य के विकास को सीमित कर रहा है।
गरीबी कोई सद्गुण नहीं है! और ना ही यह किसी दूसरे की ज़िम्मेदारी है.
विकास का बहुत बड़ा अंतर है, कोई बड़ा उद्योग नहीं , कोई बिहार में निवेश नहीं करना चाहता। और गरीबी पर तो निश्चित रूप से गर्व नहीं किया जा सकता. फिर भी बिहार की अधिकतर युवा पीढ़ी सिविल सेवा के माध्यम से सत्ता और राजनीति के पीछे लगे हुये है।
बिहारी युवा पीढ़ी को ही क्यों दोष दे? स्पष्ट है क्योंकि पुरानी पीढ़ी धन अर्जित करने में बुरी तरह विफल रही है। वे जाति ,सामंती राजनीति और युवाओं पर अपनी इस सोच को थोपने में इतने मशगूल थे कि वे अपने बच्चों में धन निर्माण, आर्थिक विकास और उद्यमिता के मूल्य को उजागर करने में चूक गए. राजनीतिक प्रबंधको के साथ सरकार भी जाति राजनीति पर आधारित चुनावो के अँकगणितो में लगी रही और सरकारी कर्मचारी भी रोजमर्रा की जिंदगी की जीवित वास्तविकताओं में मशगूल रहे. और वैसे भी, सरकार, राजनेता और सरकारी कर्मचारी केवल सुविधा के रूप में कार्य कर सकते हैं।
एक छात्र ने कहा, … लेकिन, अगर मैं कहता हूं कि मैं एक व्यापारी या उद्योगपति या उद्यमी बनना चाहता हूं तो हर कोई मुझ पर हंसेगा. यदि मैं यूपीएससी की तैयारी छोड़ देता हूं तो मेरे माता-पिता का दिल टूट जायेगा . खैर, पसंद आपकी है की आप अमीर और शक्तिशाली बनना चाहते हैं या केवल रोजगार पाके एक कर्मचारी के रूप में गरीबी जीवन में ही रहना चाहते हैं. और यदि आपको धन अर्जित करने की चाह ही नहीं है तो आपको धन कौन देगा?
सामाजिक उपहास और माता-पिता की अस्वीकृति को ध्यान में रखते हुए बिहारी छात्रों को यह स्वीकार करने में भी बहुत साहस और हिम्मत की जरूरत है की वे उधमी बनना चाहता हैं. निश्चित रूप से, सफल उद्यमिता का मार्ग जोखिम से भरा है और यह आसान नहीं है। इसलिए युवा उद्यमी का समर्थन, संरक्षण, प्रचार और सम्मान करने के लिए एक मजबूत प्रणाली कि आवश्यकता है।
उचित लोग जैसे कि निपुण उद्यमी, उद्योग विशेषज्ञ, और निवेशक के समूहों को शामिल करके जो व्यापार योजना और संचालन में युवा उद्यमियों की पहचान, समर्थन और मार्गदर्शन कर सकते है और साथ में नियामकों की आसान प्रक्रिया उद्यमियों को सफल बनाने के लिए एक लंबा सफर तय कर सकते है। राज्य को उद्योग और व्यापार अनुकूल सामाजिक वातावरण, सही कानून और व्यवस्था, संपत्ति के अधिकार और व्यवसाय करने में आसानी का माहौल बनाने की आवश्यकता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात उद्यमियों को उनके प्रयासों और राज्य में योगदान के लिए उन्हें गौरवान्वित महसूस कराएं। उद्यमियों और उनके उद्यम की बचाव करनी चाहिए। सतत आर्थिक विकास में उन्हें पुरस्कृत करना और उनका सम्मान करना बहुत उपयोगी होगा. और वह लोग जो किसी कारणवश उभर नहीं पा रहे है उनको प्रोत्साहित करना कि वह भी विकास और उन्नति के इंजन में शामिल हो जाए।
नहीं! कृपया इस पर कोई राजनीति नहीं करें। यह पूंजीवाद और समाजवाद के बारे में नहीं है, ना ही अमीरों और गरीबो के बारे में है. इसने तार्किक दुविधाओं से काफी आगे तक साबित किया है कि “नवाचार और उद्यमिता” गरीबी से बाहर निकलने का एकमात्र तरीका है. ईमानदारी पूर्वक, कड़ी मेहनत से धन निर्माण के लिए केवल विचारधारा की आवश्यकता है ।
बिहार में हर किसी को “आर्थिक रूप से सफल होना” या बनना , ये उनका धर्म होना चाहिए। आखिरकार भगवानों को भी धन की ज़रूरत है!
बिहार में उद्यमिता सामाजिक आंदोलन बननी चाहिए। लोगो से पहले बिहार के शीर्ष सर्वप्रचलित प्रसिद्ध व्यक्तियों जैसे मंत्रियों और सरकारी कर्मचारियों को सचिवालय में कैंटीन जैसे लाभदायक रूप से एक छोटे से उद्यम को चलाकर योगदान देना चाहिए एवं लोगों के सामने उदाहरण स्थापित करना चाहिए।
“बिहार की जरूरत क्या है” श्रृंखला-१ बिहार की जरूरत क्या है इसके वैल्यू सिस्टम में भारी सुधार की
लेखक: उमेश प्रसाद
लेखक लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के पूर्व छात्र हैं और ब्रिटेन स्थित पूर्व अकादमिक हैं ।
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