
आज लाक्डाउन में अपने घर में बठै न्यज़ू चनैल देख रहा था कि मन में विचार आया कि क्यों ना ज़मातियो को मरकज़ में रहना दिया जाता । सभी करोना पॉज़िटिव थे लेकिन साथ साथ मरकज़ में ही रहना चाहते थे । सरकार उन्हें वहाँ से निकाल उन्हें और मुस्लिम समाज को नाराज़ किया । यदि उन्हें उनकी इक्छा अनुसार वही रहने देते तो सरकार की बदनामी तो होती लेकिन शायद महामारी इतनी नही फैलती ।
दूसरा विचार यह आया कि कही उन्हें बदनाम करने के लिए तो नही किया जा रहा है ये सब । अंदेशा है कि कुछ विदेश से आए ज़माति करोना पॉज़िटिव थे, सोशल डिस्टन्सिंग मैंटैन नही हो रहा था । अतः बाक़ी भी पॉज़िटिव हो जाते।
उन्हें आयसलेशन सेंटर भेजे जाने पर कुछ मौलवियों की विकृत प्रतिक्रिया, सेंटर पर उनके अभद्र व्यवहार एवं सोशल मीडिया और न्यून चैनल पर बहस बाज़ी का का ये नतीजा मुझे समझ में आया की भारत में महामारी की बनती स्तिथि में जमातियों के योगदान को अधिक दिखानी की कोशिश की जा रही है जिससे जन मानस में दुर्भाव की भावना फैले और ये लगे की लाक्डाउन के बाद सब ठीक हो जाता यदि तबलिग़ी लोगों ने देशभर में मस्जिदों के द्वारा फैलाए नही होते ।
आज आम जनता ये सोचती दिख रही है कि जमाती एक अजेंडा के साथ मस्जिदों का इस्तेमाल कर ये सब कर रहे है जिससे दुर्भाव फैले । पढ़े लिखे बुद्धिजीवियों में भी ये बात दिख रही है जिसका प्रतिकूल प्रभाव भविष्य में ज़्यादा हो सकता है ।
मौलवियों के तीखे विकृत बयानबाज़ी और मुस्लिम स्कालर्ज़ और बुद्धिजीवियों की चुप्पी कुछ ठीक नही ।
आज़ादी के इतने सालों बाद भी मुस्लिम समाज में शिक्षा और उत्थान की स्तिथि में इन लोगों ने कुछ योगदान नही किया सम्भवतः जान बुझ कर । आज़ादी के पहले सदियों तक शक्तिशाली मुस्लिम नबाबों और सुल्तानों का देश की रियासतों पर बर्चस्व और दबदबा रहा लेकिन मुस्लिम समाज में शिक्षा का प्रसार नही हो सका और सामान्य मुस्लिम जन पिछाड़ते चले गए जबकि प्रभावशाली लोगों के बचें बिदेशो में आधुनिक शिक्षा लेते रहे जबकि सामान्य लोगों को मदरसे में ही जानबूझकर उलझाए रखा गया।अंग्रेजों के समय में ये जारी रहा और मदरसे आज भी क़ायम है
यदि मुस्लिम समाज में आधुनिक शिक्षा का प्रसार प्रचार होने दिया गया होता तो दक़ियानूसी ख़्यालों वाले मौलवियों का बर्चस्व ना होता , ना वोट बैंक की तरह राजनीति में इस्तेमाल
जब भी इनके शिक्षा की बात आती है तो मुस्लिम धर्मगुरु ही इनके बीच आ जाते हैं और बोलने लगते हैं कि हमको ऐसी शिक्षा ग्रहण नहीं करानी चाहिए । दूसरे मुस्लिम देशों ने अपनी शिक्षा पद्धति में बदलाव कर दिए लेकिन यहां की सरकारें धर्मगुरुओं के साथ मिलकर बदलाव करने ही नहीं दिया ।जीन लोगों ने बदलाव की कोशिश की उन्हें मुस्लिम विरोधी बता कर उसका बहिष्कार किया ।
लेकिन फिर एक नई किरण दिखाई दे रही है कि शायद कोई इसमें से स्कॉलर निकलेगा जो इनको आधुनिक शिक्षा दिलाकर बदलने की कोशिश करेगा शायद उसकी कोशिश रंग लाई और यह लोग अपने कौम की भलाई के बारे में जागरूक होंगे उस दिन ये लोग अपने को आगे बढ़ने के बारे में सोचेंगे तो देश भी आगे बढ़ने लगेगा, तब एक सच्चे व श्रेष्ठ भारत का निर्माण हो सकता है
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लेखक: सम्पूर्णानंद पांडेय
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