भारत के तमिलनाडु राज्य में महाबलीपुरम समुंदर के किनारे स्थित एक सुंदर धरोहर सदियों के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास को प्रदर्शित करता आ रहा है।

दक्षिणी भारत के तमिलनाडु राज्य में महाबलीपुरम या मामलापुरम चेन्नई (तमिलनाडु की राजधानी ) के ५० किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित एक प्राचीन शहर है। यह पहली शताब्दी ईस्वी के आरंभ में बंगाल की खाड़ी पर एक समृद्ध व्यापारिक बंदरगाह शहर था और जहाजों के नौ-परिवहण के लिए एक सीमाचिह्न के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। महाबलीपुरम ७ वीं से ९वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान पल्लव राजवंश नामक एक तमिल राजवंश का हिस्सा था और इस शहर का ज्यादातर भाग उनकी राजधानी शहर के अंतर्गत आता था। इस राजवंश ने दक्षिणी भारत पर शासन किया और इस अवधि को ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता था।

माना जाता है कि महाबलीपुरम का नाम राजा महाबली के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने मुक्ति पाने के लिए खुद को “वामना” (हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के पांचवें अवतार) के सामने अर्पण कर दिया था । यह लेख्य प्राचीन भारतीय ग्रंथ में प्रलेखित है जिसे विष्णु पुराण नामक से जाना गया। “पुराम” एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है शहरी निवास स्थान । इसलिए महाबलीपुरम को ‘महान बली का शहर’ के रूप में जाना गया । यह शहर अपने चांदी के सफेद रेतीले समुद्र तटों, साहित्य और कला तथा वास्तुकला के लिए जाना जाता है जिसमें उत्तम पत्थर की नक्काशीदार मूर्तियां एवं मंदिरे भी शामिल हैं और यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।

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पल्लव राजवंश के पल्लव राजा बहुत शक्तिशाली और दार्शनिक विचारक थे जिन्हें कला के संरक्षक के रूप में जाना जाता था। उन्होंने सात मंदिरों का एक परिसर बनाया जिसे आमतौर पर महाबलीपुरम के ‘सात पगोडा’ के नाम से जाना जाता है और इस परिसर को स्थापित करने के लिए मुख्य श्रेय पल्लव राजा नरसिम्हा वर्मन द्वितीय को जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब उन्हें ममलन या ‘महान पहलवान’ का खिताब मिला, तब उनकी याद में इस शहर का नाम “मामल्लपुरम” रखा गया।

इन मंदिरों का सबसे पुराना उल्लेख ‘पगोडास’ के रूप में किया गया है जब इसे भारत आने वाले समुद्री तटो पर नाविकों को मार्गदर्शन करने के लिए एक प्रकाशस्तम्भ के रूप में इस्तेमाल किया गया था। बंगाल की खाड़ी के सुरम्य तटों पर ये उत्तम ग्रेनाइट वाले सारे मंदिर जलमग्न हो गए हैं, सिवाय तटीय शिव मंदिर के और इस मंदिर को भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है।

इस मंदिर को शाब्दिक नाम तटीय मंदिर दिया गया क्योंकि यह बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित है हालांकि इसका मूल नाम अभी भी अज्ञात है। यह मंदिर, एक पांच मंजिला पिरामिड आकार की इमारत है जो ५० फीट वर्ग बेस और ६० फीट ऊंचाई के साथ पूरी तरह से काले पत्थर से बना है। तमिलनाडु राज्य में यह सबसे पहला बिन आधार का मंदिर माना जाता है। इस मंदिर की स्थिति ऐसी है कि सुबह में सूरज की पहली किरण पूर्व की ओर मंदिर के देवता पर पड़ती है। मंदिर जटिल रूप से डिजाइन किए गए नक्काशी के साथ सजाया गया है।

आगंतुक प्रवेश द्वार के माध्यम से मंदिर परिसर में प्रवेश करते हैं। मंदिर परिसर के आस-पास कई अखंड मूर्तियां मौजूद हैं। परिसर में लगभग सौ नंदी मूर्तियां हैं और प्रत्येक मूर्ति कड़ी मेहनत के साथ एक पत्थर से तराशी गयी थी। प्राचीन भारत में नंदी बैल की अत्यधिक पूजा की जाती थी। ऐसा मान्यता है कि महाबलीपुरम के तट से शेष छह मंदिर कहीं पानी में डूबे हुए हैं। पल्लव राजाओं का रचनात्मकता की ओर झुकाव महाबलीपुरम के समृद्ध और सुंदर वास्तुकला के माध्यम से सिध्द होता है। गुफाओं की आकृति, समृद्धि, एकल चट्टानों से बने मंदिर, विभिन्न नक्काशी उनकी कलात्मक रचनात्मकता को दर्शाते हैं।

२००२ से आर्किओलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (एएसआई) द्वारा अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सहयोग से जलमग्न मंदिरों के बारे में जानकारी को उजागर करने के लिए नौसेना की उदार मदद से पानी के नीचे अभियान, खुदाई और अध्ययन आयोजित किए गए हैं। अन्तर्जलीय अभियान बेहद चुनौतीपूर्ण हैं और गोताखोरों को गिरने वाली दीवारें, टूटे हुए खंभे, कदम और पत्थर के ब्लॉक भी बड़े क्षेत्र में अबाधित मिले हैं।

भारत के पूर्वी तट पर २००४ में आई सुनामी के दौरान महाबलीपुरम शहर कई दिनों तक पानी से भरा रहा जिससे मंदिर के चारों ओर सभी संरचनाओं को काफी नुकसान हुआ था। हालांकि, सुनामी की वजह से ही पुरातात्विक खजाने का भी पता लगा जो सदियों से समुद्र में छिपा हुआ था। सूनामी के दौरान समुद्र की लहरें जब लगभग ५०० मीटर वापस गयी, जलो से ‘चट्टानों की लंबी सीधी पंक्ति’ उत्पन्न हुई और एक बार फिर से छिप गयी। सुनामी के दौरान कुछ छिपे या खोये वस्तुएं तट पर बह गए और रेत से ढक आए जब पानी का बहाव कम हुआ, उदाहरण के लिए एक बड़े पत्थर का शेर और एक अपूर्ण चट्टान हाथी।

महाबलीपुरम का समृद्ध इतिहास पहले से ही पड़ोस के निवासियों में व्यापक पारंपरिक मूर्तियों के कारण अच्छी तरह से परिलक्षित होता है और दिलचस्प रूप से वे आज भी इसी तरह की तकनीकों के साथ बनाया जा रहा है जिनका उपयोग बहुत समय पहले किया गया था। इस तरह की खोजों ने महाबलीपुरम में रुचि जताई है और शहर के अतीत के बारे में प्रश्नों और सिद्धांतों को जानने के लिए जांच चल रही है।

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